Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    रघुपति राघव राजाराम भजन (Raghupati Raghav Raaja Ram Bhajan)

    रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम ॥ सुंदर विग्रह मेघश्याम गंगा तुलसी शालग्राम ॥ भद्रगिरीश्वर सीताराम भगत-जनप्रिय सीताराम ॥ जानकीरमणा सीताराम जयजय राघव सीताराम ॥ रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम ॥ Raghupati Raghav Raja Ram (Lord of the Raghu dynasty, Rama, the King) Patit Pavan Sita Ram (Sita’s Rama, the purifier of the fallen) Sundar Vigraha Megh Shyam (Beautiful form, dark like a cloud) Ganga Tulsi Shaligram (Accompanied by the Ganges, Tulsi, and the Shaligram stone) Bhadradrishwar Sita Ram (Sita’s Rama, the Lord of Bhadragiri) Bhagat-janpriya Sita Ram (Sita’s Rama, beloved of devotees) Janakiramana Sita Ram (Sita’s Rama, the delight of Janaka) Jai Jai Raghava Sita Ram (Victory, victory…

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    आत्मा रामा आनंद रमना (Aatma Rama Ananda Ramana)

    आत्मा रामा आनंद रमना आत्मा रामा आनंद रमना अच्युत केशव हरि नारायण अच्युत केशव हरि नारायण भवभय हरणा वंदित चरणा भवभय हरणा वंदित चरणा रघुकुलभूषण राजीवलोचन रघुकुलभूषण राजीवलोचन आत्मा रामा आनंद रमना आत्मा रामा आनंद रमना अच्युत केशव हरि नारायण अच्युत केशव हरि नारायण आदिनारायण अनन्तशयना आदिनारायण अनन्तशयना सच्चिदानन्द श्रीसत्यनारायण सच्चिदानन्द श्रीसत्यनारायण आत्मा रामा आनंद रमना आत्मा रामा आनंद रमना अच्युत केशव हरि नारायण अच्युत केशव हरि नारायण O Lord Rama! You are indweller of hearts and You are the embodiment of bliss. Chant the names of Keshava, Narayana and Sai, the remover of worldly fears. O Lotus eyed jewel of the Raghu dynasty, the embodiment of truth, awareness and bliss, we…

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    महामृत्युंजयमंत्र (Mahamrityunjaya Mantra)

    ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् | उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् || हे तीन आँखो वाले शिवशंकर महादेव हम सभी के पालनहार, सभी के पालनकर्ता। कृपा कर हमें इस दुनिया के मोह और माया के बंधनों तथा जन्म मरण के चक्र से मुक्ति दिलाइये। जिस प्रकार पका हुआ खरबूजा बिना किसी यत्न के अपने आप ही डाल से अलग हो जाता है। We worship the three-eyed One, who is fragrant and who nourishes all. Like the fruit falls off from the bondage of the stem, may we be liberated from death, from mortality.

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    मनोजवं मारुततुल्यवेगं (Manojavam Maarutatulyavegam)

    मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठ । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये । manojavaṃ mārutatulyavegaṃ jitendriyaṃ buddhimatāṃ variṣṭha . vātātmajaṃ vānarayūthamukhyaṃ śrīrāmadūtaṃ śaraṇaṃ prapadye . जिनकी मन के समान गति और वायु के समान वेग है, जो परम जितेन्दिय और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, उन पवनपुत्र वानरों में प्रमुख श्रीरामदूत की मैं शरण लेता हूं। The one whose mind travels with speed comparable to the wind, and who has controlled his sense organs, the supreme among scholars, son of Vayu, chief of the monkey brigade, I bow with my head to that messenger of Sri Rama.

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् (Mahishasura Mardini Stotram)

    अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते। भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥1॥ हे हिमालायराज की कन्या,विश्व को आनंद देने वाली,नंदी गणों के द्वारा नमस्कृत,गिरिवर विन्ध्याचल के शिरो (शिखर) पर निवास करने वाली,भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने वाली,इन्द्रदेव के द्वारा नमस्कृत,भगवान् नीलकंठ की पत्नी,विश्व में विशाल कुटुंब वाली और विश्व को संपन्नता देने वाली है महिषासुर का मर्दन करने वाली भगवती!अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो,जय हो,जय हो । सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥2॥ देवों को वरदान देने वाली,दुर्धर और दुर्मुख असुरों को…

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    देवी स्तुति – या देवी सर्वभूतेषु (Goddess Durga Stuti)

    सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥ हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगल मयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को) सिद्ध करने वाली हो। शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। हे नारायणी, तुम्हें नमस्कार है। Salutations to you, O Narayani (Goddess), You who are the source of all auspiciousness and blessings, The auspicious and benevolent one, the bestower of all desires, The one who is the refuge of all, The three-eyed (Trimbake) Goddess, Gauri, I bow to you again and again. या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ जो देवी…

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    श्री राम स्तुति: (Shri Ram Stuti)

    श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणंनवकंज लोचन, कंजमुख कर, कंज पद कंजारुणं श्रीरामचन्द्रजी कृपालु हैं। हे मन! उनके चरणों का भजन कर, जो संसार के दुःखों को हरने वाले हैं। जिनकी आंखें, मुख, हाथ और चरण सभी लाल कमल के समान हैं। O my mind, sing glory of sri ramchandra who is compassionate who destroys the fear of world and whose eyes, face, hands, feets are like newly blooming lotus कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरज सुन्दरमपट पीत मानहु तडित रूचि-सुचि नौमी, जनक सुतावरं जिनकी सुंदरता अनगिनत कामदेवों से भी बढ़कर है, जिनका रूप नवनीलमणि के समान सुंदर है, पीताम्बर धारण किए हुए हैं और जिनका तेज…

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    श्री हनुमान चालीसा (Shri Hanuman Chalisa)

    Classic version: Fast version: दोहा श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।। बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।। चौपाई जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।। राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।। महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।। कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुँचित केसा।। हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे। कांधे मूंज जनेउ साजे।। शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वंदन।। बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।। सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।…

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम् (Shiva Panchakshara Stotram)

    नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्माङ्गरागाय महेश्वराय । नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥१॥ शिवपञ्चाक्षर स्तोत्र के रचयिता आदि गुरु शंकराचार्य हैं, जो परम शिवभक्त थे। शिवपञ्चाक्षर स्तोत्र पंचाक्षरी मन्त्र नमः शिवाय पर आधारित है। न – पृथ्वी तत्त्व का म – जल तत्त्व का शि – अग्नि तत्त्व का वा – वायु तत्त्व का और य – आकाश तत्त्व का प्रतिनिधित्व करता है। जिनके कण्ठ में सर्पों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अंगराग है और दिशाएँ ही जिनका वस्त्र हैं अर्थात् जो दिगम्बर (निर्वस्त्र) हैं ऐसे शुद्ध अविनाशी महेश्वर न कारस्वरूप शिव को नमस्कार है॥1॥ 1.1: (Salutations to Lord Shiva) Who has the most…

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    शिवताण्डवस्तोत्रम् (Shiva Tandava Stotram)

    जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् । डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥ भगवान शिव के जटाएं एक घने जंगल की तरह हैं, जिनमें गंगा के पवित्र जल का प्रवाह हो रहा है, जो संपूर्ण ब्रह्माण्ड को शुद्ध करता है। गंगा जो उनके गले में लटक रही है, वह सर्पों की माला के रूप में सजी हुई है। उनके डमरू की आवाज, “दम! दम! दम!” गूंज रही है और वे विध्वंस के लिए चंडी ताण्डव नृत्य कर रहे हैं। भगवान शिव का यह दिव्य नृत्य हम सभी को समृद्धि और सुख प्रदान करें। The matted locks of Lord Shiva are like a dense forest, with the holy waters of the…

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम् (Ashtalakshmi Stotram)

    ॥ आदिलक्ष्मि ॥ सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि,चन्द्र सहोदरि हेममये मुनिगणमण्डित मोक्षप्रदायनि,मञ्जुळभाषिणि वेदनुते। पङ्कजवासिनि देवसुपूजित,सद्गुण वर्षिणि शान्तियुते जय जय हे मधुसूदन कामिनि,आदिलक्ष्मि सदा पालय माम्॥1॥ आदि लक्ष्मी को नमस्कार। धर्मी लोग आपकी पूजा करते हैं, आप चंद्र की बहन माधव की सुंदर पत्नी हैं, और सोने से भरी हुई हैं। आप मुनियों द्वारा पूजे जाते हैं, आप मोक्ष के दाता हैं, आप मीठा बोलते हैं, और वेदों में आपकी प्रशंसा की जाती है। आप कमल के फूल पर निवास करते हैं और देवताओं द्वारा पूजे जाते हैं। आप उत्तम गुणों की वर्षा करते हैं और आप सदैव शान्त रहते हैं। मधुसूदन (भगवान विष्णु का एक अन्य नाम, जिन्होंने राक्षस मधु का…

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    क्षमा प्रार्थना (Apology Prayer)

    क्षमा प्रार्थना देवी क्षमा प्रार्थना – नित्य पूजा के बाद बोले यह क्षमा प्रार्थना  ॐ अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया |  दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि || १ ||  आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् |  पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि || २ ||  हे परमेश्वरि परम भगवती रात और दिन मेरे द्वारा सहस्त्र अपराध हुआ करते है | मेरा यह दास है ( में आपका दस हु ) ऐसा समझकर तुम मुझ पर कृपा करके मेरे अपराधों को क्षमा करो || १ || Verse 1: “Om, I commit thousands of offenses, day and night. Considering myself as Your servant, O Supreme Goddess, please forgive me.” ना में आवाहन करना जानता…

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    श्री शिव रूद्राष्टकम (Shiva Rudrashtakam)

    नमामीशमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् । निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥ हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूं। निज स्वरूप में स्थित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन, आकाश रूप शिवजी मैं आपको नमस्कार करता हूं। “I bow to Lord Shiva, who is the embodiment of the ultimate reality, who is vast and all-pervading. He is the form of the supreme knowledge, the formless, without any duality, free from desires, and dwelling in the infinite consciousness (the sky of consciousness).” This verse praises Lord Shiva, describing him as the supreme, formless, and eternal being,…

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    निर्वाण षटकम् (Nirvana Shatkam)

    मनोबुद्धय्हंकार चित्तानि नाहं न च श्रोत्रजिव्हे न च घ्राणनेत्रे न च व्योमभूमिर्न तेजो न वायुः चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥1॥ मैं न तो मन हूं‚ न बुद्धि‚ न अहांकार‚ न ही चित्त हूं मैं न तो कान हूं‚ न जीभ‚ न नासिका‚ न ही नेत्र हूं मैं न तो आकाश हूं‚ न धरती‚ न अग्नि‚ न ही वायु हूं मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं। I am neither the mind, nor the intellect, nor the ego, nor the consciousness. I am neither the ears, nor the tongue, nor the nose, nor the eyes. I am neither the sky, nor the earth, nor the fire, nor the…

  • Sanatan Dharma (सनातन धर्म)

    कालभैरवाष्टकम्  (Kalabhairava Ashtakam)

    देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् । नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥१॥ जिनके पवित्र चरर्णों की सेवा देवराज इंद्र भगवान सदा करते हैं, जिन्होंने शिरोभूषण के रुप में चंद्र और सांप (सर्प) को धारण किया है, जो दिगंबर जी के वेश में हैं और नारद भगवान आदि योगीयो का समूह जिनकी पूजा, वंदना करते हैं, उन काशी के नाथ कालभैरव जी को मैं भजता हूं। “I worship the Lord of Kashi, the Supreme Lord, who is served by Devaraja (the king of gods), whose feet are revered by all, whose thread is adorned by the serpent, whose crown is the moon, who is the dispenser of grace, who is worshiped by the yogis…